अंकुश उपाध्याय व् राम सवाद निषाद की रिपोर्ट
‘‘अटला देवी’’ मंदिर के नाम से जाना जा रहा था,आज वह इस समय आटाला मस्जिद के नाम से विख्यात
‘‘अटला देवी’’ मंदिर के नाम से जाना जा रहा था,आज वह इस समय आटाला मस्जिद के नाम से विख्यात
जौनपुर/नौपेड़वा।बक्सा विकास खंड के सुजियामऊॅं गांव में स्थापित मां काली का मंदिर श्रद्धालुओं के लिये आस्था का प्रतिक है नवरात्र के आलावा श्रावन मास तथा प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को यहां सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है।
छह सौ वर्ष पुराने इस मंदिर में आज भी ऐतिहासिकता के प्रमाण मौजूद हैं। मंदिर के विषय में यह मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 600 वर्ष पूर्व हुआ था। मूर्ति के विषय में मान्यता है कि यह वहीं मूर्ति हैं जिसे कन्नौज के राजा विजय चन्द्र द्वारा निर्मित ‘‘अटला देवी’’ में मंदिर को शर्की सुल्तान इब्राहिम शाह द्वारा सन् 1408 में तोड़ कर मस्जिद का निर्माण किया गया था। यह वहीं मूर्ति है जिसे जिला मुख्यालय के बलुआ घाट गोमती नदी के किनारे रख दी गई थी। उसी बीच की यह घटना है कि जौनपुर शहर में ताड़तला के निवासी स्वर्गीय रामचन्दर साहू को देवी जी के स्वप्न दिखाया कि आप मुझे यहां से पष्चिम दिषा की ओर ले चलो फिर वह सुबह सोकर उठे और नहा धोकर उस मूर्ति को लेकर वहां से निकल पड़े चलते-चलते स्वर्गीय रामचन्द्रर साहू जी ने जब सुजियामऊं गांव में पहुंचा तो साहू जी को एक पाकड़ की पेड़ नजर आई तो वो सोचे की अच्छा जगह है यहीं थोड़ा सा विश्राम कर ले तो वह इस मूर्ति को उस पाकड़ के बीचे रख दिये और विश्राम किये। साहू जी जब विश्राम कर चुके तब उन्होंने उस मूर्ति को उठाने लगे वहां से वह मूर्ति हीला तक नहीं तब उसके बाद स्व0 रामचन्द्रर साहू जी ने समस्त ग्रामवासियों को बुलाया और उसी जगह पर मां काली के नाम से प्राण प्रतिष्ठा करा दी। जिसका नाम आज भी ‘‘अटला देवी’’ की जगह महांकाली जी के नाम से पूजन अर्चना करते है मुगल शासक इब्राहिम शाह ने मंदिर तोड़वकर श्रद्धालुओं व हिन्दुओं के ऊपर अत्याचार किया था। उसी मान्यता के तहत आज भी जौनपुर शहर के हनुमानघाट, बुलआ घाट, तड़तला, टिकुली, पानदरिबा, प्रेमराजपुर, ओलगंज, शेषपुर आदि। जगह के नागरिक व व्यवसायी ईष्ट देवी मानते हुये कराही, मुण्डन, पूजन, अर्चना करने हेतु सुजियामऊं आते रहते है। जहां कि जौनपुर के व माधवगंज के किसी सेठ ने ग्रामीणों की मदद लेकर लखौरियां ईट एवं चूने से मंदिर का निर्माण करवा दिया तो समय की साथ जीर्ण-षीर्ण हो गया। सन् 1974 में इलाहाबाद ‘‘इरइल’’ से सच्चा बाबा जौनपुर के हत्या बाबा के मंदिर स्थल पर आगमन के बाद समस्त क्षेत्रवासियों के सहयोग से पांच वर्ष में मंदिर को भव्य रूप प्रदान कर दिया। उक्त ऐतिहासिक सिद्ध स्थल पर समय-समय पर देष के जाने माने सन्त जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज जी, विष्व गुरू स्वामी, करूणानन्द महाराज जी, स्वामी प्रेमदास, रामापणी महाराज जी, बाबा श्री बालक दास जी ‘‘ उत्तराखण्ड’’ आदि जैसे लोग अनुष्ठान व यज्ञ कर चुके हैं। भक्तगण बताते है कि मां श्री महाकाली मंे बड़ी शक्ति है। उदाहरण के तौर पर गांव के प्रत्येक दर्षी महेन्द्र उपाध्याय आखों देखा हाल बया करते हैं। की सेड़री गांव निवासी सूबेदार यादव ‘वकील’ की बहन को लड़का नहीं हो रहा था उसने मां से मन्नत मांगी और डेढ़ साल बादर पुत्र की प्रप्ति हुई लेकिन उनकी बहन सासुराल से मायके आयी और वापस चली गई मां दर्षन पूजन नहीं कि ससुराल जाते ही पुत्र बिमार हुआ और मर गया कुछ दिनों बाद दूसरे पुत्र का जन्म हुआ और वह माइके आई पुत्र को लेकर दवा दिलाने जा रही थी। उसी दौरान दूसरा पुत्र मर गया। तब उसे अपने गलती याद आया वह मरे हुये पुत्र को लेकर मां के चैखट पर आ के रोने लगी देखते ही देखते भारी भीड़ इकठ्ठा हो गई और कुछ लोग समझाने लगे तब भी नहीं मानी कुछ समय बाद कुछ ऐसा चमत्कार देखने को मिला कि पुत्र जिन्दा हो गया वहीं फिर और विधि पूर्वक पूजा करके वापस अपने घर चली गई। आज भी वह लड़का देवी जी का दर्जषन के लिये बराबर आता रहता है। जो कि आज वहीं आटला मंदिर जौनपुर शहर में आटाला मस्जिद के नाम से विख्यात है।