जयपुर के गौरव मेहता का कहना है कि बारह साल की उम्र से उन्हें सिक्के जमा करने का शौक थाण् अपने दोस्तों को दिखाने के लिए एक दिन अपनी घड़ी में वही सिक्का लगा दिया और सबको हैरान कर दिया
बस तब से घड़ियों में इनका सिक्का चल निकलाण्
ब्रिटेन से रिस्क मैनजमेंट की डिग्री लेने के बाद अब वो लोगों की फ़रमाइश के अनुसार घड़ी तैयार करते हैंए जो बेहद ख़ास होती हैण्
गौरव का कहना है कि सिक्कों की एक घड़ी बनाने में चार से पांच महीने लगते हैंए तब जाकर एक नायाब पीस तैयार होता है और इस तरह हाथ पर एक धरोहर साथ चलती हैण्
श्पुराने सिक्के नहीं लेताश्
ब्रिटेन के छठे किंग जॉर्ज से गौरव इतने प्रभावित हैं कि सिर्फ उनका ही सिक्का इनकी घड़ियों पर चलता हैण् इसलिए गौरव का पूरा कलेक्शन एक ही थीम पर हैण्बस तब से घड़ियों में इनका सिक्का चल निकलाण्
ब्रिटेन से रिस्क मैनजमेंट की डिग्री लेने के बाद अब वो लोगों की फ़रमाइश के अनुसार घड़ी तैयार करते हैंए जो बेहद ख़ास होती हैण्
गौरव का कहना है कि सिक्कों की एक घड़ी बनाने में चार से पांच महीने लगते हैंए तब जाकर एक नायाब पीस तैयार होता है और इस तरह हाथ पर एक धरोहर साथ चलती हैण्
श्पुराने सिक्के नहीं लेताश्
गौरव मेहता बताते हैं कि वो घड़ी में सिर्फ़ ऐसा सिक्का लगाते हैं जो कभी भी इस्तेमाल न हुआ होण् इन नए सिक्कों को पाने के लिए उन्हें कई बार परेशानी भी उठानी पड़ती हैए लेकिन गौरव हमेशा नए सिक्कों की तलाश करते रहते हैंण्
गौरव मेहता की कंपनी की कोई भी दो घड़ियाँ कभी भी एक जैसी नहीं होतींण्
गौरव का मानना है कि वो नहीं चाहते की उनकी घड़ी की डिज़ाइन हमेशा एक जैसी होण्
वो कहते हैं कि इस काम में लोगों के साथ अनुभव अच्छा रहाण् भारतीय लग़्जरी बाज़ार में इस तरह का एक अलग काम है जहाँ ग्राहक और दुकानदार दोनों की कल्पना उड़ान भरती हैण्
एक रुपये की घड़ी हज़ारों में
आज भी उनकी बनाई एक रुपये वाली घड़ी उनके पास हैण्
वो घड़ी की क़ीमत के बारे में बताते हैं कि शुरुआत बाइस हज़ार से होती है और उसके बाद कितनी भी क़ीमती घड़ी बनाई जा सकती हैण्
गौरव मेहता की पसंदीदा घड़ी मोर के पंखों वाली है क्योंकि ये रंग उनके अनुसार कोई पेंट कर ही नहीं सकताए इसलिए इन पंखों का डायल इनका ख़ास हैण्
वक़्त की मशीन बनाने के लिए धैर्य की ज़रूरत होती हैण् गौरव का सपना है कि पूरी दुनिया में मेड इन इंडिया का परचम लहराए और भारतीय घड़ियां भी सबकी कलाई पर नज़र आएण्