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काशी में निकला भव्य शिव बरात, देव-दानव, प्रेत-पिशाच बने बाराती

#JCN 
अंकुश उपाध्याय व् रोशन साहनी 
वाराणसीकाशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी का हर नागरिक अपने आराध्य की बरात में शामिल होने के रुआब को लेकर ऐंठा हुआ है।
क्या देव-दानव, क्या प्रेत-पिशाच और क्या यक्ष- गंधर्व हर कोर्ई ङ्क्षहडोल लेते मस्ती के झूले में बैठा हुआ है। महाशिवरात्रि पर एक ओर जहां हर शिवालय के सामने लंबी पांतें लगेंगी, वहीं दूसरी ओर गली-गली शिव बरातें सजेंगी बरातें तो आपने बहुत देखी होंगी मगर शंकर बाबा की अनोखी बरात का कोई सानी नहीं है, बिना किसी भेद के इन बरातों में हर कोई स्व को छोड़ कर बाबा का गण बन कर डोलता है। क्या ऊंच-नीच और क्या ङ्क्षहदू-मुसलमान, हर कोई बरात में शामिल होकर एक मन एक प्राण बस हर-हर बम-बम बोलता है। शिव की नगरी में बाबा के परिणयोत्सव पर शिव बरात की परंपरा बहुत पुरानी रही है किंतु इस दौर में इन बरातों का स्वरूप एक सुगठित शोभायात्रा का न होकर मोहल्ले- मोहल्ले टोलियों का हुआ करता था। आगे चल कर शिव कुछ भक्तों ने बाबा की बरात को एक परंपरा के रूप में स्थापित करने का यत्न किया और महापर्व के अवसर पर एक अटूट शोभायात्रा निकालने का संकल्प लिया। हाल फिलहाल बनारस में आधा दर्जन से अधिक बरातें निकलती हैैं जिन्हें भावात्मक आधार पर किसी से किसी को कमतर नहीं आंका जा सकता। इसमें शहरी क्षेत्र में दारानगर की बरात विश्ïवेश्वर खंड का प्रतिनिधित्व तो तिलभांडेश्वर से निकली बरात केदारखंड की परिक्रमा करती है। लक्सा लालकुटी व्यायामशाला व अर्दली बाजार से निकली बरात भी भव्यता और दिव्यता के स्तर पर शिव भक्तों को मन-मगन करती है। हालांकि परंपराओं से जुड़े कुछ स्कूलों से इसकी शुरुआत एक दिन पहले ही हो जाती है। बाबा दरबार में रेला -बाबा के विवाहोत्सव का मौका तो भला उनका दरबार इससे कैसे अलग दिख जाए। महापर्व के मौके पर बाबा के आंगन में जनवासा सजाया जाता है। मंगल गीतों को बीच विवाह के रस्मों के प्रतीक अनुसार चार पहर आरती की जाती है। एक दिन पहले से ही बाबा के दर्शन के लिए पूरी काशी नगरी उमड़ जाती है। अविनाशी काशी के पुराधिपति हैैं बाबा विश्वनाथ। नगरी के कण कण में उनका वास विश्व विख्यात है। काशीवासी उनसे जुड़े तिथि पर्वों को अपने घर के उत्सव की तरह मनाता है। इसमें महाशिवरात्रि सर्व प्रमुख है। इसका महात्म्य शास्त्रों में भी बखाना गया है। पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि ही वह दिन है जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। इस दिन काशीवासी पूजन-अनुष्ठान और दूध-जल से अभिषेक के साथ भांग-धतूरा समेत वह सब कुछ बाबा को अर्पित करते हैैं जो भोले शंकर को भाता है। व्रत-पूजन, अनुष्ठान -विधान में उल्लास का रंग घुल जाता है। श्रीकाशी विद्वत परिषद के मंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के ब्रह्म के रूद्र रूप में भगवान शंकर का अवतरण हुआ था। माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने तांडव कर अपना तीसरा नेत्र खोलकर इसकी ज्वाला से ब्रह्मांड को समाप्त किया था। वैसे हर माह में एक शिवरात्रि होती है लेकिन फागुन की शिवरात्रि का अत्यंत महत्व है।